TOP LATEST FIVE शिव आरती URBAN NEWS

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जय अम्बे गौरी, get more info मैया जय श्यामा गौरी - आरती

ओम जय दुःख हरति सुख करती, भक्तन हितकारी। माया जय आनंद कंडे।।

जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥

विमलसूरि द्वारा लिखे गए रामायण के जैन संस्करण पउमचरिउ (पद्मचरित) में हनुमान का उल्लेख एक दिव्य वानर के रूप में नहीं, बल्कि एक विद्याधरा (एक अलौकिक प्राणी, जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान में मृगमरीचिका) के रूप में किया गया है। वह पवनगति (पवन देवता) और अंजना सुंदरी के पुत्र हैं। अंजना अपने ससुराल वालों द्वारा निर्वासित होने के बाद, एक जंगल की गुफा में हनुमान को जन्म देती है। उसके मामा ने उसे जंगल से बचाया; अपने विमना पर सवार होते हुए, अंजना गलती से अपने बच्चे को एक चट्टान पर गिरा देती है। हालांकि, चट्टान नदारद होने के बावजूद बच्चा अधूरा रह गया। बच्चे की परवरिश हनुरहा में हुई है।

हनुमान जी बालपन मे बहुत नटखट थे, वो अपने इस स्वभाव से साधु-संतों को सता देते थे। बहुधा वो उनकी पूजा सामग्री और आदि कई वस्तुओं को छीन-झपट लेते थे। उनके इस नटखट स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी शक्तियों को भूल जाने का एक लघु शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से हनुमान अपनी सब शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल जाते थे और पुनः किसी अन्य के स्मरण कराने पर ही उन्हें अपनी असीमित शक्तियों का स्मरण होता था। ऐसा माना जाता है कि अगर हनुमान शाप रहित होते तो रामायण में राम-रावण युद्ध का स्वरूप पृथक(भिन्न, न्यारा) ही होता। कदाचित वो स्वयं ही रावण सहित सम्पूर्ण लंका को समाप्त कर देते।

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता, मैय्या तुम ही जग माता।

आरती के दौरान, भक्त भगवान शिव के गुणों की प्रशंसा करते हुए और उनका आशीर्वाद मांगते हुए भक्तिपूर्ण भजन और प्रार्थनाएँ गाते हैं। आरती के दीपक की रोशनी को लयबद्ध संगीत और मंत्रोच्चार के साथ देवता के सामने गोलाकार गति में लहराया जाता है। प्रकाश लहराने का कार्य अंधेरे को दूर करने और भगवान शिव को अपनी भक्ति और प्रार्थना अर्पित करने का प्रतीक है।

इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर…॥

हनुमान इन सभी बातों से अनिभिज्ञ थे। यद्यपि मकरध्वज को पता था कि हनुमान उसके पिता हैं मगर वो उन्हें पहचान नहीं पाया क्योंकि उसने पहले कभी उन्हें देखा नहीं था।

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क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर…॥

कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता

इति मृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा, शिव हृत्कमले धृत्वा

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